श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 57-58
 
 
श्लोक  2.22.57-58 
সর্ব-গুহ্যতমṁ ভূযঃ
শৃণু মে পরমṁ বচঃ
ইষ্টো ’সি মে দৃঢম্ ইতি
ততো বক্ষ্যামি তে হিতম্
মন্-মনা ভব মদ্-ভক্তো
মদ্-যাজী মাṁ নমস্কুরু
মাম্ এবৈষ্যসি সত্যṁ তে
প্রতিজানে প্রিযো ’সি মে
सर्व - गुह्यतमं भूयः शृणु मे परमं वचः ।
इष्टोऽसि मे दृढ़मिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥57॥
मन्मना भव मद्भक्तो मयाजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥58॥
 
अनुवाद
“क्योंकि तुम मेरे बहुत प्यारे मित्र हो, इसलिए मैं तुम्हें अपने सर्वोत्तम उपदेश के तौर पर ज्ञान का सबसे छिपा हुआ अंश बता रहा हूँ। इसे मुझसे सुनो, क्योंकि यह तुम्हारे फायदे के लिए है। हमेशा मेरे बारे में सोचो और मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे ही प्रणाम करो। इस तरह से तुम बेशक मेरे पास आओगे। मैं तुम्हें यह वादा करता हूँ, क्योंकि तुम मेरे प्रिय मित्र हो।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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