श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 51 |
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| | श्लोक 2.22.51  | মহত্-কৃপা বিনা কোন কর্মে ‘ভক্তি’ নয
কৃষ্ণ-ভক্তি দূরে রহু, সṁসার নহে ক্ষয | महत्कृपा विना कोन कर्मे ‘भक्ति’ नय ।
कृष्ण - भक्ति दूरे रहु, संसार नहे क्षय ॥51॥ | | अनुवाद | “किसी को भी शुद्ध भक्त की कृपा प्राप्त हुए बिना भक्ति का मार्ग नहीं मिल सकता है। कृष्ण की भक्ति की बात छोड़ दीजिए, मनुष्य भौतिक अस्तित्व के बंधन से भी मुक्त नहीं हो सकता है।” | | |
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