श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 5 |
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| | श्लोक 2.22.5  | কৃষ্ণ-ভক্তি — অভিধেয, সর্ব-শাস্ত্রে কয
অতএব মুনি-গণ করিযাছে নিশ্চয | कृष्ण - भक्ति - अभिधेय, सर्व - शास्त्रे कय ।
अतएव मुनि - गण करियाछे निश्चय ॥5॥ | | अनुवाद | “मनुष्य के सारे कार्यों का उद्देश्य सिर्फ भगवान कृष्ण की भक्ति ही होनी चाहिए। यही सभी वैदिक साहित्यों का सार है और सभी संतों ने इसको पक्का मानते हुए निर्णय लिया है। | | |
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