“[जब न्रुव महाराज को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् वर दे रहे थे, तब उन्होंने कहा था: ] , ‘हे प्रभु, चूँकि मैं ऐश्वर्ययुक्त भौतिक पद की खोज में था, इसलिए मैं कठिन तपस्या कर रहा था। अब तो मैंने आपको पा लिया है, जिन्हें बड़े - बड़े देवता, मुनि तथा राजा भी बड़ी कठिनाई से प्राप्त कर पाते हैं। मैं तो एक काँच का टुकड़ा ढूँढ रहा था, किन्तु इसके बदले मुझे बहुमूल्य रत्न मिल गया है। अतएव मैं इतना सन्तुष्ट हूँ कि अब मैं आपसे कोई वर नहीं चाहता।” |