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श्लोक 2.22.41  |
কাম লাগি’ কৃষ্ণে ভজে, পায কৃষ্ণ-রসে
কাম ছাডি’ ‘দাস’ হৈতে হয অভিলাষে |
काम ला गि’ कृष्ण भजे, पाय कृष्ण - रसे ।
काम छा ड़ि’ ‘दास’ हैते हय अभिलाषे ॥41॥ |
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अनुवाद |
जब कोई इन्द्रियों (भौतिक सुखों) की संतुष्टि के लिए प्रभु श्री कृष्ण की भक्ति में लगता है पर उसे इसकी जगह प्रभु श्री की सेवा का रस मिलता है तो वो अपनी भौतिक इच्छाओं का त्याग कर स्वेच्छा से प्रभु श्री कृष्ण के चरणों में अपना अर्पण कर देता है और प्रभु के सनातन सेवक के रूप में कार्य करता है। |
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