श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  2.22.40 
সত্যṁ দিশত্য্ অর্থিতম্ অর্থিতো নৃণাṁ
নৈবার্থ-দো যত্ পুনর্ অর্থিতা যতঃ
স্বযṁ বিধত্তে ভজতাম্ অনিচ্ছতাম্
ইচ্ছা-পিধানṁ নিজ-পাদ-পল্লবম্
सत्यं दिशत्यर्थितमर्थितो नृणां नैवार्थ - दो यत्पुनरर्थिता यतः ।
स्वयं विधत्ते भजतामनिच्छताम् इच्छा - पिधानं निज - पाद - पल्लवम् ॥40॥
 
अनुवाद
“जब भी कृष्ण से कोई इच्छा पूरी करने का निवेदन किया जाता है, तो वे उसे निश्चित रूप से पूरा करते हैं, लेकिन वे ऐसा वरदान नहीं देते हैं, जिसके अनुभव के बाद भी बार-बार मांगने की आवश्यकता पड़े। जब किसी की अन्य इच्छाएँ होती हैं, लेकिन साथ ही वह भगवान की सेवा में लगा रहता है, तो कृष्ण उसे बलपूर्वक अपने चरणों में सुरक्षा देते हैं, जहाँ वह अन्य सभी इच्छाओं को भूल जाता है।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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