श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 4 |
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| | श्लोक 2.22.4  | এবে কহি, শুন, অভিধেয-লক্ষণ
যাহা হৈতে পাই — কৃষ্ণ, কৃষ্ণ-প্রেম-ধন | एबे कहि, शुन, अभिधेय - लक्षण ।
याहा हैते पाइ - कृष्ण, कृष्ण - प्रेम - धन ॥4॥ | | अनुवाद | “अब मैं भक्ति के लक्षणों के विषय में कहूँगा, जिसके द्वारा मनुष्य कृष्ण का आश्रय तथा उनकी दिव्य प्रेममयी सेवा को प्राप्त कर सकता है।” | | |
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