श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 39 |
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| | श्लोक 2.22.39  | আমি — বিজ্ঞ, এই মূর্খে ‘বিষয’ কেনে দিব?
স্ব-চরণামৃত দিযা ‘বিষয’ ভুলাইব | आमि - विज्ञ, एइ मूर्ख ‘विषय’ केने दिब ? ।
स्व - चरणामृत दिया ‘विषय’ भुलाइब ॥39॥ | | अनुवाद | “चूँकि मैं बहुत बुद्धिमान हूँ, इसलिए मैं इस मूर्ख को भौतिक संपन्नता क्यों दूँ? इसके बदले में मैं उसे अपने चरणकमलों की शरण के अमृत का स्वाद चखाऊँगा और उसके मन से भ्रामक भौतिक सुख-सुविधाओं की इच्छा मिटा कर उसका उद्धार करूँगा।” | | |
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