श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  2.22.36 
অকামঃ সর্ব-কামো বা
মোক্ষ-কাম উদার-ধীঃ
তীব্রেণ ভক্তি-যোগেন
যজেত পুরুষṁ পরম্
अकामः सर्व - कामो वा मोक्ष - काम उदार - धीः ।
तीव्रण भक्ति - योगेन यजेत पुरुषं परम् ॥36॥
 
अनुवाद
“कोई भी हो चाहे वह सबकुछ चाहे या कुछ भी न चाहे, या फिर भगवान् में मिल जाना चाहे, वह तभी बुद्धिमान होता है जब वह भगवान् कृष्ण की, जो कि पूर्ण पुरुषोत्तम है, दिव्य प्रेम भक्ति के द्वारा पूजा करता है।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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