श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  2.22.35 
ভুক্তি-মুক্তি-সিদ্ধি-কামী ‘সুবুদ্ধি’ যদি হয
গাঢ-ভক্তি-যোগে তবে কৃষ্ণেরে ভজয
भुक्ति - मुक्ति - सिद्धि - कामी ‘सुबुद्धि’ यदि हय ।
गाढ़ - भक्ति - योगे तबे कृष्णेरे भजय ॥35॥
 
अनुवाद
"कुसंगति के कारण जीव भौतिक सुख, मुक्ति या परमेश्वर के निर्विशेष पहलू से एकाकार होना चाहता है या भौतिक शक्ति के लिए योग-साधना में लिप्त हो जाता है। यदि ऐसा व्यक्ति वास्तव में बुद्धिमान हो जाता है, तो वह भगवान श्रीकृष्ण की गहन भक्ति में लगकर कृष्णभावनामृत को अपना लेता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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