श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 25 |
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| | श्लोक 2.22.25  | তাতে কৃষ্ণ ভজে, করে গুরুর সেবন
মাযা-জাল ছুটে, পায কৃষ্ণের চরণ | ताते कृष्ण भजे, करे गुरुर सेवन ।
माया - जाल छुटे, पाय कृष्णेर चरण ॥25॥ | | अनुवाद | यदि बद्ध आत्मा भगवान् की सेवा में संलग्न होती है और साथ ही अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेशों का पालन करती है और उनकी सेवा करती है, तो वह माया के चंगुल से निकल सकती है और कृष्ण के चरणकमलों में आश्रय पाने के योग्य बन सकती है। | | |
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