“जब शुद्ध ज्ञान सम्पूर्ण भौतिक आकर्षण से परे होता है, किन्तु सर्वोच्च व्यक्ति भगवान (कृष्ण) को समर्पित नहीं होता, तो यह भौतिक मल से रहित होते हुए भी अधिक सुन्दर नहीं दिखाई देता। तो फिर सकाम कर्मों का क्या लाभ, जो प्रारम्भ से ही कष्टप्रद और स्वभाव से क्षणिक हैं, यदि उनका उपयोग भगवान की भक्तिमय सेवा के लिए नहीं किया जाता? भला वे किस तरह अत्यन्त आकर्षक हो सकते हैं?” |