श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 165
 
 
श्लोक  2.22.165 
প্রীত্য্-অঙ্কুরে ‘রতি’, ‘ভাব’ — হয দুই নাম
যাহা হৈতে বশ হন শ্রী-ভগবান্
प्रीत्यङ्कुरे ‘रति’, ‘भाव’ - हय दुइ नाम ।
याहा हैते वश हन श्री - भगवान् ॥165॥
 
अनुवाद
“प्रेम के बीज में लगाव होता है, जिसे दो नामों से जाना जाता है - रति और भाव। सर्वोच्च भगवान भी इस तरह के लगाव के वशीभूत हो जाते हैं।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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