श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 162
 
 
श्लोक  2.22.162 
ন কর্হিচিন্ মত্-পরাঃ শান্ত-রূপে
নঙ্ক্ষ্যন্তি নো মে ’নিমিষো লেঢি হেতিঃ
যেষাম্ অহṁ প্রিয আত্মা সুতশ্ চ
সখা গুরুঃ সুহৃদো দৈবম্ ইষ্টম্
न कर्हिचिन्मत्पराः शान्त - रूपे नङ्क्ष्यन्ति नो मेऽनिमिषो लेढ़ि हेतिः ।
येषामहं प्रिय आत्मा सुतश्च सखा गुरुः सुहृदो दैवमिष्टम् ॥162॥
 
अनुवाद
"हे प्यारी माँ देवहूति! हे शांति की प्रतीक! मेरा कालचक्र रूपी शस्त्र उन लोगों का विनाश नहीं करता, जिनके लिए मैं अति प्रिय हूँ, जिनके साथ मैं परमात्मा, पुत्र, मित्र, गुरु, शुभचिंतक, आराध्य देव एवं इच्छित लक्ष्य हूँ। चूँकि भक्तगण सदैव मुझमें आस्था रखते हैं, इसलिए वे काल के दूतों द्वारा कभी विनष्ट नहीं किए जाते।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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