दास - सखा - पित्रादि - प्रेयसीर गण ।
राग - मार्गे निज - निज - भावेर गणन ॥161॥
अनुवाद
"कृष्ण के भक्त कई प्रकार के होते हैं - कुछ सेवक होते हैं, कुछ मित्र होते हैं, कुछ माता-पिता होते हैं और कुछ प्रेमी होते हैं। जो भक्त अपनी इच्छानुसार इनमें से किसी भी रागवृत्ति में स्थित होते हैं, उन्हें रागमार्ग में प्रवृत्त माना जाता है।"