श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 160
 
 
श्लोक  2.22.160 
কৃষ্ণṁ স্মরন্ জনṁ চাস্য
প্রেষ্ঠṁ নিজ-সমীহিতম্
তত্-তত্-কথা-রতশ্ চাসৌ
কুর্যাদ্ বাসṁ ব্রজে সদা
कृष्णं स्मरन् जनं चास्य प्रेष्ठं निज - समीहितम् ।
तत्तत्कथा - रतश्चासौ कुर्याद्वासं व्रजे सदा ॥160॥
 
अनुवाद
भक्त को चाहिए कि वह अपने मन में सदैव कृष्ण का ध्यान रखे और ऐसे प्रिय भक्त को चुने जो वृंदावन में कृष्ण का सेवक हो। उसे उस सेवक की कथाओं के विषय में तथा कृष्ण के साथ उसके प्रेममय संबंधों के विषय में सदैव चिंतन करना चाहिए और उसे वृंदावन में निवास करना चाहिए। यदि कोई शरीर से वृंदावन नहीं जा सकता, तो उसे मानसिक रूप से वहाँ रहना चाहिए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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