श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 156-157
 
 
श्लोक  2.22.156-157 
বাহ্য, অন্তর, — ইহার দুই ত’ সাধন
‘বাহ্যে’ সাধক-দেহে করে শ্রবণ-কীর্তন
‘মনে’ নিজ-সিদ্ধ-দেহ করিযা ভাবন
রাত্রি-দিনে করে ব্রজে কৃষ্ণের সেবন
बाह्य, अन्तर , - इहार दुइ त’ साधन ।
‘बाह्ये’ साधक - देहे करे श्रवण - कीर्तन ॥156॥
‘मने’ निज - सिद्ध - देह करिया भावन ।
रात्रि - दिने करे व्रजे कृष्णेर सेवन ॥157॥
 
अनुवाद
रागानुगा भक्ति बाहरी और आंतरिक, इन दो तरीकों से संपन्न की जा सकती है। जब उन्नत भक्त स्वरूपसिद्ध हो जाता है, तो वह बाहर से नया भक्त जैसा बना रहता है और सुनने और जपने जैसे सभी शास्त्रीय आदेशों का पालन करता रहता है। लेकिन वो मन में अपनी मूल शुद्ध स्वरूपसिद्ध स्थिति में विशेष तरीके से वृंदावन में कृष्ण की सेवा करता है। वह चौबीसों घंटे कृष्ण की सेवा में लगा रहता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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