श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 155
 
 
श्लोक  2.22.155 
তত্-তদ্-ভাবাদি-মাধুর্যে
শ্রুতে ধীর্ যদ্ অপেক্ষতে
নাত্র শাস্ত্রṁ ন যুক্তিṁ চ
তল্ লোভোত্পত্তি-লক্ষণম্
तत्तद्भावादि - माधुयें श्रुते धीर्घदपेक्षते ।
नात्र शास्त्रं न युक्तिं च तल्लोभोत्पत्ति - लक्षणम् ॥155॥
 
अनुवाद
जब कोई स्वरूप-सिद्ध उन्नत भक्त, श्री वृंदावन के भक्तों के शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य रस के कार्यो के बारे में सुनता है, तो वह उनमें से किसी एक की ओर आकर्षित हो जाता है और उसकी बुद्धि भी उसी ओर चलायमान हो जाती है। निस्संदेह, वह उस विशेष भक्ति की ओर लालायित हो जाता है। जब ऐसी आकांक्षा जागृत हो जाती है, तब उसकी बुद्धि शास्त्र के निर्देशों या तर्क-वितर्क पर निर्भर नहीं रहती।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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