श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 152 |
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| | श्लोक 2.22.152  | রাগমযী-ভক্তির হয ‘রাগাত্মিকা’ নাম
তাহা শুনি’ লুব্ধ হয কোন ভাগ্যবান্ | रागमयी - भक्तिर हय ‘रागात्मि का’ नाम ।
ताहा शुनि’ लुब्ध हय कोन भाग्यवान् ॥152॥ | | अनुवाद | इस प्रकार राग (गहरी आसक्ति) से युक्त भक्ति सेवा रागात्मिका कहलाती है। यदि कोई भक्त ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेता है, तो उसे परम भाग्यशाली माना जाता है। | | |
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