श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 144
 
 
श्लोक  2.22.144 
স্ব-পাদ-মূলṁ ভজতঃ প্রিযস্য
ত্যক্তান্য-ভাবস্য হরিঃ পরেশঃ
বিকর্ম যচ্ চোত্পতিতṁ কথঞ্চিদ্
ধুনোতি সর্বṁ হৃদি সন্নিবিষ্টঃ
स्व - पाद - मूलं भजतः प्रियस्य त्यक्तान्य - भावस्य हरिः परेशः ।
विकर्म यच्चोत्पतितं कथञ्चिद् धुनोति सर्वं हृदि सन्निविष्टः ॥144॥
 
अनुवाद
"जो कुछ भी त्यागकर भगवान हरि के चरण कमलों में शरण लेता है, वो कृष्ण को अत्यंत प्रिय है। यदि कोई गलती से भी पाप में फंस जाता है, तब भी उसके दिल में विराजमान भगवान उसके पापों को मिटा देते है।"
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.