श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 143 |
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| | श्लोक 2.22.143  | অজ্ঞানে বা হয যদি ‘পাপ’ উপস্থিত
কৃষ্ণ তাঙ্রে শুদ্ধ করে, না করায প্রাযশ্চিত্ত | अज्ञाने वा हय यदि ‘पाप’ उपस्थित ।
कृष्ण ताँरे शुद्ध करे, ना कराय प्रायश्चित्त ॥143॥ | | अनुवाद | यदि किसी भक्त से अनजाने में ही कोई पापकर्म हो जाए, तो कृष्ण उसे शुद्ध कर लेते हैं। उसे उसके लिए कोई औपचारिक प्रायश्चित्त नहीं करना पड़ता। | | |
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