काम त्य जि’ कृष्ण भजे शास्त्र - आज्ञा मा नि’ ।
देव - ऋषि - पित्रादिकेर कभु नहे ऋणी ॥140॥
अनुवाद
यदि कोई व्यक्ति वेद-शास्त्रों में वर्णित निर्देशों का पालन करते हुए समस्त भौतिक इच्छाओं का त्याग कर देता है और कृष्ण की प्रेमभक्ति में पूर्ण रूप से संलग्न हो जाता है, तो वह देवताओं, ऋषियों, मुनियों या पूर्वजों का कोई ऋण नहीं रहता है।