श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 134 |
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| | श्लोक 2.22.134  | ‘এক’ অঙ্গ সাধে, কেহ সাধে ‘বহু’ অঙ্গ
‘নিষ্ঠা’ হৈলে উপজয প্রেমের তরঙ্গ | ‘एक’ अङ्ग साधे, केह साधे ‘बहु’ अङ्ग ।
‘निष्ठा’ हैले उपजय प्रेमेर तरङ्ग ॥134॥ | | अनुवाद | जब भक्त भक्ति में दृढ़ हो जाता है, चाहे वह भक्ति की एक विधि का पालन करे या अनेक विधियों का, भगवान के प्रति प्रेम की लहरें जाग्रत हो ही जाती हैं। | | |
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