श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 128 |
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| | श्लोक 2.22.128  | সাধু-সঙ্গ, নাম-কীর্তন, ভাগবত-শ্রবণ
মথুরা-বাস, শ্রী-মূর্তির শ্রদ্ধায সেবন | साधु - सङ्ग, नाम - कीर्तन, भागवत - श्रवण ।
मथुरा - वास, श्री - मूर्तिर श्रद्धाय सेवन ॥128॥ | | अनुवाद | “मनुष्य को चाहिए कि वह भक्तों की संगति करे, भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करे, श्रीमद्भागवत सुने, मथुरा में निवास करे और श्रद्धा व सम्मानपूर्वक अर्चाविग्रह की पूजा करे।” | | |
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