श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 127
 
 
श्लोक  2.22.127 
সর্বথা শরণাপত্তি, কার্তিকাদি-ব্রত
‘চতুঃ-ষষ্টি অঙ্গ’ এই পরম-মহত্ত্ব
सर्वथा शरणापत्ति, कार्तिकादि - व्रत ।
‘चतुःषष्टि अङ्ग’ एइ परम - महत्त्व ॥127॥
 
अनुवाद
(34) भक्त को चाहिए कि वह प्रत्येक मामले में कृष्ण की शरण में चले जाए। (35) कार्तिक व्रत जैसे विशेष व्रत रखे। भक्ति के चौंसठ कार्यों में ये कुछ महत्त्वपूर्ण बातें बताई गयी हैं।
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.