श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 123 |
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| | श्लोक 2.22.123  | পরিক্রমা, স্তব-পাঠ, জপ, সঙ্কীর্তন
ধূপ-মাল্য-গন্ধ-মহাপ্রসাদ-ভোজন | परिक्रमा, स्तव - पाठ, जप, सङ्कीर्तन ।
धूप - माल्य - गन्ध - महाप्रसाद - भोजन ॥123॥ | | अनुवाद | मन्दिर में आने वाले व्यक्ति को निम्न कार्य अवश्य करने चाहिएं: (17) मन्दिर की परिक्रमा करे, (18) स्तुति-पाठ करे, (19) मन्द स्वर में जप करे, (20) सामूहिक कीर्तन में भाग ले, (21) पूजा में धूप और फूल चढ़ाए, और (22) पूजा में चढ़ाए गये भोजन का शेष प्रसाद के रूप में ग्रहण करे। | | |
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