श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 122 |
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| | श्लोक 2.22.122  | অগ্রে নৃত্য, গীত, বিজ্ঞপ্তি, দণ্ডবন্-নতি
অভ্যুত্থান, অনুব্রজ্যা, তীর্থ-গৃহে গতি | अग्रे नृत्य, गीत, विज्ञप्ति, दण्डवन्नति ।
अभ्युत्थान, अनुव्रज्या, तीर्थ - गृहे गति ॥122॥ | | अनुवाद | भक्त को करना चाहिए कि वह (10) भगवान के सामने नृत्य करे, (11) उनके सामने गाए, (12) अपने मन की बात उन्हें बताए, (13) उन्हें नमस्कार करे, (14) उनके और गुरु के सामने खड़ा होकर सम्मान दिखाए, (15) उनका या गुरु का अनुसरण करे और (16) अलग-अलग तीर्थस्थानों में जाए या मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाए। | | |
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