श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 121 |
|
| | श्लोक 2.22.121  | শ্রবণ, কীর্তন, স্মরণ, পূজন, বন্দন
পরিচর্যা, দাস্য, সখ্য, আত্ম-নিবেদন | श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पूजन, वन्दन ।
परिचर्या, दास्य, सख्य, आत्म - निवेदन ॥121॥ | | अनुवाद | “भक्ति भाव में परिपूर्ण व्यक्ति को जो कार्य करने चाहिए, वे इस प्रकार हैं - (1) श्रवण करना, (2) गुणगान करना, (3) स्मरण करना, (4) पूजा करना, (5) प्रार्थना करना, (6) सेवा करना, (7) सेवाभाव को स्वीकार करना, (8) मित्रता करना और (9) पूर्ण समर्पण करना।” | | |
| ✨ ai-generated | |
|
|