श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 119 |
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| | श्लोक 2.22.119  | হানি-লাভে সম, শোকাদির বশ না হ-ইব
অন্য-দেব, অন্য-শাস্ত্র নিন্দা না করিব | हानि - लाभे सम, शोकादिर वश ना हइब ।
अन्य - देव, अन्य - शास्त्र निन्दा ना करिब ॥119॥ | | अनुवाद | (15) भक्त को हानि और लाभ को एक समान रूप से देखना चाहिए। (16) भक्त को विलाप से अभिभूत नहीं होना चाहिए। (17) भक्त को न तो देवताओं की पूजा करनी चाहिए और न ही उनका अपमान करना चाहिए। इसी प्रकार, भक्त को अन्य शास्त्रों का अध्ययन या आलोचना नहीं करनी चाहिए। | | |
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