श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 118 |
|
| | श्लोक 2.22.118  | অবৈষ্ণব-সঙ্গ-ত্যাগ, বহু-শিষ্য না করিব
বহু-গ্রন্থ-কলাভ্যাস-ব্যাখ্যান বর্জিব | अवैष्ण व - सङ्ग - त्याग, बहु - शिष्य ना करिब ।
बहु - ग्रन्थ - कलाभ्यास - व्याख्यान वर्जिब ॥118॥ | | अनुवाद | “बारहवाँ अंग है भक्तिहीनों की संगति त्यागना। (13) मनुष्य को बहुत सारे शिष्य नहीं बनाने चाहिए। (14) केवल संदर्भ देने और व्याख्या बताने के उद्देश्य से कई शास्त्रों का आधा-अधूरा अध्ययन नहीं करना चाहिए।” | | |
| ✨ ai-generated | |
|
|