श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 117
 
 
श्लोक  2.22.117 
ধাত্র্য্-অশ্বত্থ-গো-বিপ্র-বৈষ্ণব-পূজন
সেবা-নামাপরাধাদি দূরে বিসর্জন
धात्र्य श्वत्थ - गो - विप्र - वैष्णव - पूजन ।
सेवा - नामापराधादि दूरे विसर्जन ॥117॥
 
अनुवाद
(10) मनुष्यों को धात्री वृक्ष, बरगद के पेड़, गाय, ब्राह्मण एवं भगवान विष्णु के भक्तों की पूजा करनी चाहिए | (11) उसे भक्ति व पवित्र नाम का अपमान करने से बचना चाहिए |
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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