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श्लोक 2.22.114  |
বিবিধাঙ্গ সাধন-ভক্তির বহুত বিস্তার
সঙ্ক্ষেপে কহিযে কিছু সাধনাঙ্গ-সার |
विविधा ङ्ग साधन - भक्तिर बहुत विस्तार ।
सङ्क्षेपे कहिये किछु साधनाङ्ग - सार ॥114॥ |
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अनुवाद |
मैं भक्ति के विभिन्न साधनांगों के विषय में कुछ कहूँगा, जिनका विस्तार अनेक प्रकार से हुआ है। मैं मुख्य साधनांगों के विषय में संक्षेप में कहना चाहता हूँ। |
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