श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 11 |
|
| | श्लोक 2.22.11  | ‘নিত্য-মুক্ত’ — নিত্য কৃষ্ণ-চরণে উন্মুখ
‘কৃষ্ণ-পারিষদ’ নাম, ভুঞ্জে সেবা-সুখ | ‘नित्य - मुक्त’ - नित्य कृष्ण - चरणे उन्मुख ।
‘कृष्ण - पारिष द’ नाम, भुञ्जे सेवा - सुख ॥11॥ | | अनुवाद | “जो नित्यमुक्त हैं, वे हमेशा कृष्ण-भावनामृत में जागे रहते हैं और भगवान कृष्ण के चरणों में परमप्रेम से परलौकिक सेवा करते हैं। उन्हें कृष्ण के नित्य संगी माना जाता है और वे कृष्ण-सेवा के दिव्य आनंद का निरंतर अनुभव करते रहते हैं।” | | |
| ✨ ai-generated | |
|
|