राग - हीन जन भजे शास्त्रेर आज्ञाय ।
‘वैधी भ क्ति’ बलि’ तारे सर्व - शास्त्रे गाय ॥109॥
अनुवाद
जो लोग रागानुगा भक्ति को प्राप्त नहीं कर पाए हैं, वे शास्त्रों में वर्णित विधानों के अनुसार किसी वास्तविक गुरु के मार्गदर्शन में भक्ति करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस प्रकार की भक्ति को वैधी भक्ति कहा जाता है।