श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 22: भक्ति की विधि » श्लोक 106 |
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| | श्लोक 2.22.106  | শ্রবণাদি-ক্রিযা — তার ‘স্বরূপ’-লক্ষণ
‘তটস্থ’-লক্ষণে উপজায প্রেম-ধন | श्रवणादि - क्रिया - तार ‘स्वरूप’ - लक्षण ।
‘तटस्थ’ - लक्षणे उपजाय प्रेम - धन ॥106॥ | | अनुवाद | “श्रवण, कीर्तन, स्मरण और इसी प्रकार की अन्य आध्यात्मिक क्रियाएँ भक्ति की नैसर्गिक विशेषताएँ हैं। इसकी सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि यह कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम को जाग्रत करती है।” | | |
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