श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 101
 
 
श्लोक  2.22.101 
তবাস্মীতি বদন্ বাচা
তথৈব মনসা বিদন্
তত্-স্থানম্ আশ্রিতস্ তন্বা
মোদতে শরণাগতঃ
तवास्मीति वदन्वाचा तथैव मनसा विदन् ।
तत्स्थानमाश्रितस्तन्वा मोदते शरणागतः ॥101॥
 
अनुवाद
"जिसका शरीर पूरी तरह से समर्पित है, वह उस पवित्र स्थान का आश्रय लेता है जहाँ कृष्ण ने अपनी लीलाएं की थीं। वह प्रभु से प्रार्थना करता है, “हे प्रभु, मैं तुम्हारा हूँ।” इसे अपने मन से समझकर वह आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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