श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 100
 
 
श्लोक  2.22.100 
আনুকূল্যস্য সঙ্কল্পঃ
প্রাতিকূল্যস্য বর্জনম্
রক্ষিষ্যতীতি বিশ্বাসো
গোপ্তৃত্বে বরণṁ তথা
আত্ম-নিক্ষেপ-কার্পণ্যে
ষড্-বিধা শরণাগতিঃ
रक्षिष्यतीति विश्वासो गोप्तृत्वे वरणं तथा ।
आत्म - निक्षेप - कार्पण्ये षड् - विधा शरणागतिः ॥100॥
 
अनुवाद
“शरणागति के छह विभाग ये हैं - भक्ति के पक्ष में अनुकूल बातों को स्वीकार करना, प्रतिकूल बातों को नकारना, कृष्ण द्वारा संरक्षण पर पूर्ण विश्वास, भगवान् को संरक्षक या स्वामी के रूप में स्वीकार करना, संपूर्ण आत्मसमर्पण एवं विनम्रता।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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