श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 22: भक्ति की विधि  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.22.1 
বন্দে শ্রী-কৃষ্ণ-চৈতন্য-
দেবṁ তṁ করুণার্ণবম্
কলাব্ অপ্য্ অতি-গূঢেযṁ
ভক্তির্ যেন প্রকাশিতা
वन्दे श्री - कृष्ण - चैतन्य - देवं तं करुणार्णवम् ।
कलावण्प्य ति - गूढ़ेयं भक्तिर्येन प्रकाशिता ॥1॥
 
अनुवाद
मैं श्री चैतन्य महाप्रभु को हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ। वे दिव्य करुणा के सागर हैं और यद्यपि भक्ति-योग का विषय बहुत ही गुप्त है, फिर भी उन्होंने इसे इस कलियुग, कलह के युग में भी बहुत ही सरलता से प्रकट कर दिया है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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