वन्दे श्री - कृष्ण - चैतन्य - देवं तं करुणार्णवम् ।
कलावण्प्य ति - गूढ़ेयं भक्तिर्येन प्रकाशिता ॥1॥
अनुवाद
मैं श्री चैतन्य महाप्रभु को हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ। वे दिव्य करुणा के सागर हैं और यद्यपि भक्ति-योग का विषय बहुत ही गुप्त है, फिर भी उन्होंने इसे इस कलियुग, कलह के युग में भी बहुत ही सरलता से प्रकट कर दिया है।