श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 21: भगवान् श्रीकृष्ण का ऐश्वर्य तथा माधुर्य  »  श्लोक 130
 
 
श्लोक  2.21.130 
এই চান্দের বড নাট, পসারি’ চান্দের হাট,
বিনিমূলে বিলায নিজামৃত
কাহোঙ্ স্মিত-জ্যোত্স্নামৃতে, কাঙ্হারে অধরামৃতে,
সব লোক করে আপ্যাযিত
एइ चान्देर बड़ नाट, पसारि’ चान्देर हाट
विनिमूले विलाय निजामृत ।
काहों स्मित - ज्योत्स्नामृते, काँहारे अधरामृते
सब लोक करे आप्यायित ॥130॥
 
अनुवाद
चेहरे पर नाचती हुई उनकी काया दूसरी चांदनी से बाजी मार लेती है और चांदनी के हाट-बाजार को विस्तार देती है। कृष्ण का मुंह अमूल्य होने पर भी सबको वितरित किया जाता है। कुछ उनकी मुस्कान से छलकती चांदनी को खरीद लेते हैं। दूसरे उनके होठों के अमृत को खरीद लेते हैं। इस तरह वे सबको तृप्त करते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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