श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 21: भगवान् श्रीकृष्ण का ऐश्वर्य तथा माधुर्य » श्लोक 117 |
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| | श्लोक 2.21.117  | সেই ত’ মাধুর্য-সার, অন্য-সিদ্ধি নাহি তার,
তিঙ্হো — মাধুর্যাদি-গুণ-খনি
আর সব প্রকাশে, তাঙ্র দত্ত গুণ ভাসে,
যাহাঙ্ যত প্রকাশে কার্য জানি | सेइ त’ माधुर्य - सार, अन्य - सिद्धि नाहि तार
तिंहो - माधुर्यादि - गुण - खनि ।
आर सब प्रकाशे, ताँर दत्त गुण भासे
याहाँ यत प्रकाशे कार्य जानि ॥117॥ | | अनुवाद | कृष्ण के शरीर की मधुर कान्ति का सार इतना सटीक है कि उससे बढ़कर कोई संपूर्णता नहीं है। वे दिव्य गुणों के सनातन खज़ाने हैं। उनके अन्य स्वरूपों तथा निजी विस्तारों में ऐसे गुणों का केवल आंशिक प्रदर्शन ही होता है। इस तरह हम उनके समस्त निजी विस्तारों को समझ पाते हैं। | | |
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