श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 21: भगवान् श्रीकृष्ण का ऐश्वर्य तथा माधुर्य » श्लोक 106 |
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| | श्लोक 2.21.106  | ব্রহ্মাণ্ডোপরি পরব্যোম, তাহাঙ্ যে স্বরূপ-গণ,
তাঙ্-সবার বলে হরে মন
পতি-ব্রতা-শিরোমণি, যাঙ্রে কহে বেদ-বাণী,
আকর্ষযে সেই লক্ষ্মী-গণ | ब्रह्माण्डोपरि परव्योम, ताहाँ ये स्वरू प - गण
ताँ - सबार बले हरे मन ।
पति - व्रता - शिरोमणि, याँरे कहे वेद - वाणी
आकर्षये सेइ लक्ष्मी - गण ॥106॥ | | अनुवाद | "कृष्ण के सौंदर्य आकर्षण ने न केवल भौतिक संसार के देवताओं और जीवों को लुभाया बल्कि विस्तारों के रूप में नारायण सहित आध्यात्मिक आकाश के व्यक्तित्वों को भी मोहित किया है। इन नारायणों का मन कृष्ण के सौंदर्य आकर्षण से खींचा चला आता है। इसके अतिरिक्त, इन नारायणों की पत्नियाँ जो लक्ष्मी हैं, जिन्हें वेदों में सदा निष्ठावान पत्नियाँ कहा गया है, वे भी कृष्ण के सौंदर्य के चमत्कार से प्रभावित हैं।" | | |
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