“हे प्रभु, हे वसुदेवनंदन श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी परमेश्वर, मैं आपको सादर वंदन करता हूं। मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूं, क्योंकि वे परम सत्य हैं और सृष्टि, पालन और संहार के सभी कारणों के मूल कारण हैं। वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अभिव्यक्तियों से अवगत हैं और स्वतंत्र हैं क्योंकि उनसे परे कोई अन्य कारण नहीं है। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया। उनके कारण ही महान ऋषि और देवता भी उसी तरह भ्रम में पड़ जाते हैं, जैसे कोई अग्नि में जल या जल में पृथ्वी देखकर भ्रमित हो जाता है। उनके कारण ही भौतिक ब्रह्मांड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं, जबकि वे वास्तव में अवास्तविक हैं। इसलिए मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूं, जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरंतर निवास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूं, क्योंकि वे ही परम सत्य हैं।’ |