श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 20: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा सनातन गोस्वामी को परम सत्य के विज्ञान की शिक्षा  »  श्लोक 359
 
 
श्लोक  2.20.359 
জন্মাদ্য্ অস্য যতো ’ন্বযাদ্ ইতরতশ্ চার্থেষ্ব্ অভিজ্ঞঃ স্বরাট্
তেনে ব্রহ্ম হৃদা য আদি-কবযে মুহ্যন্তি যত্ সূরযঃ
তেজো-বারি-মৃদাṁ যথা বিনিমযো যত্র ত্রি-সর্গো ’মৃষা
ধাম্না স্বেন সদা নিরস্ত-কুহকṁ সত্যṁ পরṁ ধীমহি
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वरा ट् तेने ब्रह्म हुदा य आदि - कवये मुह्यन्ति यत्सूरयः ।
तेजो - वारि - मृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्त - कुहकं सत्यं परं धीमहि ॥359॥
 
अनुवाद
“हे प्रभु, हे वसुदेवनंदन श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी परमेश्वर, मैं आपको सादर वंदन करता हूं। मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूं, क्योंकि वे परम सत्य हैं और सृष्टि, पालन और संहार के सभी कारणों के मूल कारण हैं। वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी अभिव्यक्तियों से अवगत हैं और स्वतंत्र हैं क्योंकि उनसे परे कोई अन्य कारण नहीं है। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया। उनके कारण ही महान ऋषि और देवता भी उसी तरह भ्रम में पड़ जाते हैं, जैसे कोई अग्नि में जल या जल में पृथ्वी देखकर भ्रमित हो जाता है। उनके कारण ही भौतिक ब्रह्मांड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं, जबकि वे वास्तव में अवास्तविक हैं। इसलिए मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूं, जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरंतर निवास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूं, क्योंकि वे ही परम सत्य हैं।’
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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