श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 20: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा सनातन गोस्वामी को परम सत्य के विज्ञान की शिक्षा  »  श्लोक 313
 
 
श्लोक  2.20.313 
হরির্ হি নির্গুণঃ সাক্ষাত্
পুরুষঃ প্রকৃতেঃ পরঃ
স সর্ব-দৃগ্ উপদ্রষ্টা
তṁ ভজন্ নির্গুণো ভবেত্
हरिर्हि निर्गुणः साक्षात्पुरुषः प्रकृतेः परः ।
स सर्व - दृगुपद्रष्टा तं भजन्निर्गुणो भवेत् ॥313॥
 
अनुवाद
श्री हरि अर्थात् पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान भौतिक प्रकृति की पहुँच के बाहर हैं, अतएव वे दिव्य परम पुरुष हैं। वे सारी वस्तुओं के बाहर और भीतर देख सकते हैं, इसलिए वे सभी जीवों के परम दृष्टा हैं। जो व्यक्ति उनके चरणकमलों की शरण में जाता है और उनकी पूजा करता है, उसे भी दिव्य पद प्राप्त होता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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