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श्लोक 2.20.29  |
ভূঞা হাসি’ কহে, — “আমি জানিযাছি পহিলে
অষ্ট মোহর হয তোমার সেবক-আঙ্চলে |
भूञा हासि’ कहे, - “आमि जानियाछि पहिले ।
अष्ट मोहर हय तोमार सेवक - आँचले ॥29॥ |
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अनुवाद |
जमींदार ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हारे देने से पहले ही मैं जानता था कि तुम्हारे सेवक के पास आठ सोने के सिक्के हैं।" |
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