श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 20: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा सनातन गोस्वामी को परम सत्य के विज्ञान की शिक्षा  »  श्लोक 173
 
 
श्लोक  2.20.173 
অন্যে চ সṁস্কৃতাত্মানো
বিধিনাভিহিতেন তে
যজন্তি ত্বন্-মযাস্ ত্বাṁ বৈ
বহু-মূর্ত্য্ এক-মূর্তিকম্
अन्ये च संस्कृतात्मानो विधिनाभिहितेन ते ।
यजन्ति त्वन्मयास्त्वां वै बहु - मूक - मूर्तिकम् ॥173॥
 
अनुवाद
“विविध वैदिक शास्त्रों में विभिन्न रुपों की पूजा के विधि-विधान और नियम नियत किए गए हैं। जब मनुष्य इन नियमों और विधियों से शुद्ध हो जाता है, तब वह आपकी, पूर्ण भगवान की पूजा करता है। हालाँकि आप अनेक रूपों में प्रकट होते हैं, लेकिन आप एक ही हैं।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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