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श्लोक 2.20.169  |
সৌভর্য্-আদি-প্রায সেই কায-ব্যূহ নয
কায-ব্যূহ হৈলে নারদের বিস্ময না হয |
सौभर्यादि - प्राय सेइ काय - व्यूह नय ।
काय - व्यूह हैले नारदेर विस्मय ना हय ॥169॥ |
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अनुवाद |
"भगवान कृष्ण के प्रभाषा-प्रकाश का विस्तार, महाऋषि सौभरि के विस्तार जैसा नहीं है। अगर उनके विस्तार इस प्रकार के होते तो नारद उन्हें देखकर विस्मित नहीं होते।" |
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