श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 20: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा सनातन गोस्वामी को परम सत्य के विज्ञान की शिक्षा  »  श्लोक 169
 
 
श्लोक  2.20.169 
সৌভর্য্-আদি-প্রায সেই কায-ব্যূহ নয
কায-ব্যূহ হৈলে নারদের বিস্ময না হয
सौभर्यादि - प्राय सेइ काय - व्यूह नय ।
काय - व्यूह हैले नारदेर विस्मय ना हय ॥169॥
 
अनुवाद
"भगवान कृष्ण के प्रभाषा-प्रकाश का विस्तार, महाऋषि सौभरि के विस्तार जैसा नहीं है। अगर उनके विस्तार इस प्रकार के होते तो नारद उन्हें देखकर विस्मित नहीं होते।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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