श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 20: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा सनातन गोस्वामी को परम सत्य के विज्ञान की शिक्षा  »  श्लोक 160
 
 
श्लोक  2.20.160 
যস্য প্রভা প্রভবতো জগদ্-অণ্ড-কোটি-
কোটিষ্ব্ অশেষ-বসুধাদি-বিভূতি-ভিন্নম্
তদ্ ব্রহ্ম নিষ্কলম্ অনন্তম্ অশেষ-ভূতṁ
গোবিন্দম্ আদি-পুরুষṁ তম্ অহṁ ভজামি
यस्य प्रभा प्रभवतो जगदण्ड - कोटि - कोटिष्वशेष - वसुधादि - विभूति - भिन्नम् ।
तद् ब्रह्म निष्कलमनन्तमशेष - भूतं गोविन्दमादि - पुरुषं तमहं भजामि ॥160॥
 
अनुवाद
"मैं आदि भगवान गोविन्द की पूजा करता हूँ, जो महान् शक्ति से सम्पन्न हैं। उनके दिव्य स्वरूप की देदीप्यमान कान्ति निर्विशेष ब्रह्म है, जो परम, पूर्ण तथा असीम है और जो करोड़ों ब्रह्माण्डों में असंख्य विविध लोकों को उनके विभिन्न ऐश्वर्यों समेत प्रदर्शित करता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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