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श्लोक 2.19.245  |
রাত্রে তেঙ্হো স্বপ্ন দেখে, — প্রভু আইলা ঘরে
প্রাতঃ-কালে আসি’ রহে গ্রামের বাহিরে |
रात्रे तेंहो स्वप्न देखे , - प्रभु आइला घरे ।
प्रातःकाले आसि’ रहे ग्रामेर बाहिरे ॥245॥ |
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अनुवाद |
चंद्रशेखर ने सपने में देखा कि प्रभु श्री चैतन्य महाप्रभु उनके घर आए थे; इसलिए सुबह-सुबह ही वे महाप्रभु का स्वागत करने नगर के बाहर चले गए थे। |
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