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श्लोक 2.19.225  |
‘মমতা’ অধিক, কৃষ্ণে আত্ম-সম জ্ঞান
অতএব সখ্য-রসের বশ ভগবান্ |
‘ममता’ अधिक, कृष्णे आत्म - सम ज्ञान ।
अतएव सख्य - रसेर वश भगवान् ॥225॥ |
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अनुवाद |
सख्य-रस के मंच पर परम पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण अपने उन भक्तों के अधीन रहते हैं जो उनके घनिष्ठ होते हैं और स्वयं को श्री कृष्ण के समान मानते हैं। |
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