श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा श्रील रूप गोस्वामी को उपदेश  »  श्लोक 225
 
 
श्लोक  2.19.225 
‘মমতা’ অধিক, কৃষ্ণে আত্ম-সম জ্ঞান
অতএব সখ্য-রসের বশ ভগবান্
‘ममता’ अधिक, कृष्णे आत्म - सम ज्ञान ।
अतएव सख्य - रसेर वश भगवान् ॥225॥
 
अनुवाद
सख्य-रस के मंच पर परम पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण अपने उन भक्तों के अधीन रहते हैं जो उनके घनिष्ठ होते हैं और स्वयं को श्री कृष्ण के समान मानते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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