श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा श्रील रूप गोस्वामी को उपदेश  »  श्लोक 187
 
 
श्लोक  2.19.187 
হাস্য, অদ্ভুত, বীর, করুণ, রৌদ্র, বীভত্স, ভয
পঞ্চ-বিধ-ভক্তে গৌণ সপ্ত-রস হয
हास्य, अद्भुत, वीर, करुण, रौद्र, बीभत्स, भय ।
पञ्च - विध - भक्ते गौण सप्त - रस हय ॥187॥
 
अनुवाद
पाँच प्रत्यक्ष रसों के अलावा सात अप्रत्यक्ष रस भी होते हैं जिन्हें हास्य, अद्भुत, वीर, करुण, रौद्र, बीभत्स और भयानक रस कहा जाता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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